कार्तिक पूर्णिमा व्रत कथा और महत्व- 15 नवम्बर 2024
कार्तिक पूर्णिमा का व्रत हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है। इसे "देव दीपावली" के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि यह दिन देवताओं के लिए दीपावली के समान है। इस पर्व का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यधिक है और इसे शास्त्रों में विशेष स्थान प्राप्त है। कार्तिक पूर्णिमा व्रत का पालन करने वाले भक्त जन भगवान विष्णु, भगवान शिव, और अन्य देवताओं की पूजा करते हैं और स्नान, दान, और व्रत द्वारा अपने पापों का प्रायश्चित करते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा का महत्व
कार्तिक पूर्णिमा को "त्रिपुरी पूर्णिमा" भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक तीन असुरों का संहार किया था। इसके अलावा, यह दिन भगवान विष्णु के मत्स्य अवतार की स्मृति में भी मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन गंगा, यमुना, और सरस्वती जैसी पवित्र नदियों में स्नान करने से मनुष्य के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं।
- धार्मिक महत्वकार्तिक पूर्णिमा का दिन देवताओं की उपासना का समय होता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी पृथ्वी पर विचरण करते हैं और जो भक्त उनके नाम का जाप और दान करते हैं, उन्हें विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस दिन की गई पूजा, व्रत और दान का फल सहस्त्रगुना अधिक मिलता है।
- पवित्र स्नान का महत्वइस दिन नदी, विशेषकर गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा, या किसी अन्य पवित्र नदी में स्नान करना अत्यधिक शुभ माना जाता है। इसे "कार्तिक स्नान" कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और व्यक्ति जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्त हो जाता है।
- देव दीपावलीकार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन देवताओं ने त्रिपुरासुर राक्षस के वध के उपलक्ष्य में दीप प्रज्वलित किए थे। वाराणसी में गंगा नदी के किनारे इस दिन दीप जलाने का विशेष महत्व है। इसे एक भव्य त्योहार के रूप में मनाया जाता है, जिसमें हज़ारों दीयों की रोशनी गंगा नदी के तट को आलोकित करती है।
कार्तिक पूर्णिमा व्रत कथा
कार्तिक पूर्णिमा की व्रत कथा से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं, जिनमें से प्रमुख कथा भगवान शिव और त्रिपुरासुर की है।
त्रिपुरासुर वध की कथा
त्रिपुरासुर नामक तीन शक्तिशाली असुर थे, जिन्होंने देवताओं को पराजित कर त्रिलोक पर अपना अधिकार कर लिया था। इन असुरों ने त्रिपुर नामक तीन नगर बनाए थे, जो आकाश, पृथ्वी और पाताल में स्थित थे। त्रिपुरासुर ने भगवान शिव और विष्णु की तपस्या करके वरदान प्राप्त किया था, जिससे उन्हें अत्यधिक शक्ति मिल गई थी। देवताओं ने त्रिपुरासुर से त्रस्त होकर भगवान शिव से सहायता की प्रार्थना की।
भगवान शिव ने देवताओं की प्रार्थना सुनकर अपने धनुष से एक बाण चलाया और त्रिपुरासुर का वध कर दिया। इस दिन को त्रिपुरी पूर्णिमा कहा जाता है, और यह दिन भगवान शिव की विजय के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस दिन दीप जलाने की परंपरा शुरू हुई, जिसे देव दीपावली कहा जाता है।
मत्स्य अवतार की कथा
कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार धारण किया था। इस अवतार में उन्होंने राजा सत्यव्रत को समुद्र में आई महाप्रलय से बचाया था और वेदों की रक्षा की थी। इस कथा का उल्लेख महाभारत और पुराणों में मिलता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और उनके अवतारों की कथा सुनने से मनुष्य को ज्ञान और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
कार्तिक पूर्णिमा व्रत विधि
कार्तिक पूर्णिमा का व्रत बहुत ही सरल है, लेकिन इसमें सच्ची श्रद्धा और भक्ति की आवश्यकता होती है। इस दिन व्रत रखने वाले भक्त निम्नलिखित विधि का पालन करते हैं:
- स्नान और शुद्धिइस दिन प्रातः काल में जल्दी उठकर पवित्र नदी, तालाब या किसी जलाशय में स्नान करना चाहिए। यदि यह संभव न हो, तो घर में स्नान करते समय पवित्र जल (गंगाजल) मिलाएं।
- पूजा और हवनस्नान के बाद भगवान विष्णु, भगवान शिव, माता लक्ष्मी, और तुलसी माता की पूजा करें। पूजा में धूप, दीप, नैवेद्य, और फूल अर्पित करें। भगवान शिव को बेलपत्र और भगवान विष्णु को तुलसी पत्र अर्पित करें।
- दीपदानसंध्या समय में दीप प्रज्वलित करना विशेष महत्व रखता है। गंगा किनारे या किसी पवित्र स्थान पर दीप जलाना अत्यधिक फलदायक माना जाता है। इसे "दीपदान" कहा जाता है और इसे मोक्ष प्राप्ति का मार्ग माना गया है।
आचार्य दिनेश पाण्डेय शास्त्री (मुम्बई & उत्तराखण्ड)
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