प्रदोष व्रत की पौराणिक कथा, 13 नवम्बर 2024
प्रदोष व्रत हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण और लोकप्रिय व्रत है, जिसे भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने और उनकी विशेष अनुकंपा पाने के लिए रखा जाता है। यह व्रत हर महीने की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है, भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए भक्त उपवास रखते हैं और उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। प्रदोष व्रत का समय संध्या काल में होता है, जब दिन और रात का संगम होता है, जिसे 'प्रदोष काल' कहते हैं। इस समय को भगवान शिव का अत्यंत प्रिय माना जाता है।
प्रदोष व्रत का महत्व
प्रदोष व्रत का उल्लेख विभिन्न पुराणों में मिलता है, जैसे कि शिव पुराण, स्कंद पुराण, और पद्म पुराण , इसे भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त करने का सर्वोत्तम साधन माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि जो भक्त श्रद्धा और विश्वास के साथ प्रदोष व्रत रखते हैं, उन्हें भगवान शिव की अनुकंपा प्राप्त होती है और उनके सभी कष्ट दूर होते हैं। साथ ही, यह व्रत समस्त प्रकार के पापों से मुक्ति दिलाता है और जीवन में सुख-शांति और समृद्धि लाता है।
प्रदोष व्रत की पौराणिक कथा
प्रदोष व्रत से जुड़ी कई कथाएँ प्रचलित हैं, जिनमें से एक प्रमुख कथा निम्नलिखित है:
एक समय की बात है, एक निर्धन ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ एक छोटे से गाँव में रहता था। वह ब्राह्मण अत्यंत धार्मिक और शिवभक्त था, लेकिन उसकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। एक दिन वह शिव मंदिर में बैठकर भगवान शिव की आराधना कर रहा था और सोच रहा था कि उसकी गरीबी कब समाप्त होगी। उसी समय भगवान शिव ने उसके भक्ति भाव को देखकर पार्वती जी से कहा कि यह ब्राह्मण बहुत गरीब है, लेकिन इसका दिल बहुत पवित्र है। इसलिए मैं इसे आशीर्वाद देना चाहता हूँ।
भगवान शिव ने ब्राह्मण के सामने प्रकट होकर उससे कहा, "हे ब्राह्मण, मैं तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हूँ। तुम प्रदोष व्रत का पालन करो और मेरी आराधना करो। इससे तुम्हारी समस्त परेशानियाँ दूर होंगी और तुम्हें धन-समृद्धि प्राप्त होगी।"
ब्राह्मण ने भगवान शिव की आज्ञा का पालन किया और प्रदोष व्रत करना प्रारंभ किया। उसने पूरे विधि-विधान के साथ भगवान शिव की पूजा की। कुछ समय बाद, उसकी आर्थिक स्थिति सुधरने लगी और उसके घर में धन और समृद्धि का आगमन हुआ। ब्राह्मण ने भगवान शिव का धन्यवाद किया और प्रदोष व्रत का पालन जीवनभर किया। इस प्रकार प्रदोष व्रत ने उसके जीवन की कठिनाइयों को दूर कर दिया।
एक और प्रसिद्ध कथा
एक अन्य कथा के अनुसार, देवताओं और असुरों के बीच युद्ध चल रहा था। असुरों की ताकत बहुत बढ़ गई थी और देवता हारने लगे थे। सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए और उनसे सहायता मांगी। भगवान विष्णु ने देवताओं से कहा कि वे भगवान शिव की आराधना करें और प्रदोष व्रत का पालन करें। देवताओं ने मिलकर प्रदोष व्रत रखा और भगवान शिव की पूजा की।
भगवान शिव ने देवताओं की प्रार्थना स्वीकार की और उनके सामने प्रकट होकर कहा कि वे उन्हें युद्ध में विजय दिलाएंगे। भगवान शिव के आशीर्वाद से देवताओं ने असुरों को परास्त किया और युद्ध में विजय प्राप्त की। इस प्रकार प्रदोष व्रत ने देवताओं को जीत दिलाई और यह व्रत अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया।
प्रदोष व्रत की विधि
प्रदोष व्रत का पालन करने के लिए श्रद्धालु सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लेते हैं और स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं। इसके बाद वे भगवान शिव का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लेते हैं। दिनभर उपवास रखा जाता है और संध्या के समय भगवान शिव की पूजा की जाती है। पूजा में बेलपत्र, फूल, धूप, दीप, गंध, और नैवेद्य अर्पित किया जाता है। शिवलिंग पर जल, दूध, और शहद चढ़ाया जाता है और "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जाप किया जाता है।
संध्या के समय प्रदोष काल में विशेष पूजा की जाती है। इस समय को विशेष फलदायी माना जाता है और ऐसा कहा जाता है कि इस समय की गई पूजा से भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न होते हैं। पूजा के बाद आरती की जाती है और प्रसाद वितरण किया जाता है। व्रत रखने वाले भक्त अगले दिन अन्न ग्रहण करते हैं।
प्रदोष व्रत के प्रकार
प्रदोष व्रत को चंद्र मास के अनुसार दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है:
- शुक्ल पक्ष प्रदोष व्रत: यह व्रत हर महीने की शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को किया जाता है।
- कृष्ण पक्ष प्रदोष व्रत: यह व्रत हर महीने की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को किया जाता है।
इसके अलावा, प्रदोष व्रत को दिन के अनुसार भी विभाजित किया गया है, जैसे सोम प्रदोष (सोमवार को), भौम प्रदोष (मंगलवार को), और शनिवार को किया जाने वाला शनि प्रदोष व्रत। प्रत्येक का विशेष महत्व होता है और इनसे अलग-अलग लाभ प्राप्त होते हैं।
प्रदोष व्रत के लाभ
- स्वास्थ्य और दीर्घायु: प्रदोष व्रत रखने से व्यक्ति का स्वास्थ्य सुधरता है और उसे दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है।
- सुख-समृद्धि: यह व्रत परिवार में सुख-शांति और समृद्धि लाता है।
- पापों से मुक्ति: प्रदोष व्रत से व्यक्ति अपने पापों से मुक्ति पाता है और उसे आत्मिक शांति मिलती है।
- मनोकामना पूर्ति: श्रद्धा और भक्ति के साथ व्रत रखने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
- आध्यात्मिक उन्नति: भगवान शिव की कृपा से व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
निष्कर्ष
प्रदोष व्रत हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण और श्रद्धा से भरा हुआ व्रत है, जिसे भगवान शिव के प्रति भक्ति और आस्था के साथ मनाया जाता है। यह व्रत न केवल पापों से मुक्ति दिलाता है, बल्कि जीवन में शांति, समृद्धि और खुशियों का संचार भी करता है। भगवान शिव की कृपा से भक्तों को सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है और वे अपने जीवन में सफल होते हैं।
इस व्रत को नियमित रूप से करने वाले व्यक्ति के जीवन में कभी भी किसी प्रकार की विपत्ति नहीं आती है और भगवान शिव की अनंत कृपा उन पर बनी रहती है। इसलिए, जो व्यक्ति भगवान शिव की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें श्रद्धा और विश्वास के साथ प्रदोष व्रत का पालन करना चाहिए।
आचार्य दिनेश पाण्डेय शास्त्री (मुम्बई & उत्तराखण्ड)
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