शिवजी, माता पार्वती और वर्षा नाद शंख की कथा
प्राचीन काल में, जब भगवान शिव और माता पार्वती हिमालय पर्वत पर निवास कर रहे थे, एक समय ऐसा आया जब पृथ्वी पर भयंकर सूखा पड़ा। नदियाँ और जलाशय सूख गए, पेड़-पौधे मुरझा गए, और जीव-जंतु प्यास से व्याकुल हो उठे। प्रजा ने देवी-देवताओं की पूजा की और वर्षा के लिए प्रार्थना की, लेकिन बादल नहीं बरसे। तब सभी देवता और ऋषि-मुनि समस्या का समाधान खोजने के लिए कैलाश पर्वत पर भगवान शिव के पास पहुँचे।
माता पार्वती का आग्रह
माता पार्वती ने प्रजा और देवताओं की चिंता को देखा और उनके दुःख से व्यथित हो गईं। उन्होंने भगवान शिव से कहा, "हे महादेव, कृपा कर कुछ ऐसा करें जिससे पृथ्वी पर वर्षा हो और प्रजा को इस कष्ट से मुक्ति मिले।" शिवजी ने मुस्कुराते हुए माता पार्वती की ओर देखा और कहा, "हे पार्वती, इसका समाधान हमारे पास ही है। यह समस्या वर्षा नाद शंख के नाद से हल हो सकती है।"
वर्षा नाद शंख का महत्व
वर्षा नाद शंख एक विशेष और दिव्य शंख है, जो समुद्र मंथन के समय वरुण देव द्वारा शिवजी को प्रदान किया गया था। यह शंख अद्वितीय ध्वनि उत्पन्न करता है, जो वर्षा देवता को प्रसन्न करने और वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा फैलाने में सक्षम है। माता पार्वती को यह जानकर प्रसन्नता हुई कि उनके पास ऐसा दिव्य शंख है जो प्रजा की समस्या को हल कर सकता है।
शिवजी का शंखनाद
माता पार्वती के आग्रह पर, भगवान शिव ने वर्षा नाद शंख को अपने हाथों में उठाया। उन्होंने ध्यानमग्न होकर शंख का नाद किया। जैसे ही शंख की दिव्य ध्वनि आकाश में गूंजने लगी, पूरी पृथ्वी पर इसका प्रभाव फैल गया। शंख की गूंज इतनी शक्तिशाली और दिव्य थी कि आसमान में छाए बादल उमड़ने लगे।
वर्षा की शुरुआत
शंखनाद की ध्वनि ने वर्षा देवता को प्रसन्न कर दिया। गहरे काले बादल चारों ओर घिर आए और थोड़ी ही देर में मूसलधार वर्षा होने लगी। सूखी नदियाँ और जलाशय भरने लगे, पेड़-पौधों में जान आ गई, और प्रजा ने खुशी से शिवजी और माता पार्वती की जयकार की। सभी देवता भी प्रसन्न हुए और उन्होंने शिव-पार्वती की स्तुति की।
माता पार्वती का संदेश
जब वर्षा समाप्त हुई, माता पार्वती ने सभी को संबोधित करते हुए कहा, "यह शंख केवल एक साधन नहीं है, बल्कि यह प्रकृति और प्रेम का प्रतीक है। भगवान शिव ने इसे अपनी करुणा और दयालुता से बजाया, जिससे पृथ्वी पर जीवन की रक्षा हो सकी। यह हमें सिखाता है कि जब कठिन समय आता है, तो हमें ईश्वर और प्रकृति का सम्मान करना चाहिए और प्रेम और समर्पण से समाधान खोजना चाहिए।"
निष्कर्ष
इस कथा से यह सिद्ध होता है कि भगवान शिव और माता पार्वती सृष्टि के रक्षक हैं। वर्षा नाद शंख केवल ध्वनि का माध्यम नहीं है, बल्कि यह भगवान शिव की दयालुता और माता पार्वती के प्रेम का प्रतीक है। जब भी धरती पर कठिन समय आता है, शिव-पार्वती अपने भक्तों की रक्षा के लिए सदा तत्पर रहते हैं।
आचार्य दिनेश पाण्डेय शास्त्री (मुम्बई & उत्तराखण्ड)
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