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वरुथिनी एकादशी व्रत 24 अप्रैल 2025

वरुथिनी एकादशी व्रत की पौराणिक कथा 24 अप्रैल 2025

हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरुथिनी एकादशी कहा जाता है। ‘वरुथिनी’ का अर्थ होता है—रक्षा करने वाली। अतः यह एकादशी व्रत मनुष्य की सभी प्रकार से रक्षा करती है, उसे पापों से मुक्ति दिलाकर मोक्ष की ओर अग्रसर करती है। वरुथिनी एकादशी की महिमा श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाई थी, जो पद्म पुराण एवं भविष्योत्तर पुराण में विस्तार से वर्णित है। 

वरुथिनी एकादशी की कथा

प्राचीन काल में नरमेध नामक एक राजा था। वह अत्यंत पराक्रमी, धर्मात्मा तथा प्रजा का पालन करने वाला था। राजा नरमेध सत्य का पालन करता था और सदैव धार्मिक कार्यों में संलग्न रहता था। एक बार वह गहन तपस्या करने के लिए जंगल में चला गया। वर्षों तक उसने एक पैर पर खड़े होकर कठिन तप किया, जिससे प्रसन्न होकर भगवान ने उसे वरदान दिया।

लेकिन एक दिन एक जंगली भालू उस स्थान पर आ गया। तपस्या में लीन राजा को उसने पीछे से आकर पकड़ लिया और उसे खींचने लगा। भालू राजा को अपने गुफा में ले जाना चाहता था ताकि उसे मारकर खा सके। लेकिन राजा, जो तपस्या में रत था, उसने अपने आप को ईश्वर को समर्पित कर दिया और मन ही मन भगवान विष्णु का स्मरण करने लगा।

राजा ने कहा—

“हे प्रभु! आपने तो कहा है कि जो व्यक्ति आपकी शरण में आता है, उसकी सदैव रक्षा करते हैं। यदि मेरी तपस्या सच्ची है और मेरी श्रद्धा निष्कलंक है, तो आप मेरी रक्षा अवश्य करेंगे।”

राजा का यह भावपूर्ण प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु स्वयं प्रकट हुए और उन्होंने सुदर्शन चक्र से उस भालू का वध कर दिया। राजा को मृत्यु से बचाया।

भगवान विष्णु ने राजा से कहा—

“हे नरमेध! तुमने जो तपस्या की, वह अत्यंत कठिन थी। लेकिन अब तुम घर लौट जाओ और वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की वरुथिनी एकादशी का व्रत करो। यह व्रत तुम्हारे पूर्व जन्मों के भी पापों का नाश कर देगा और तुम्हें अक्षय पुण्य प्रदान करेगा।”

राजा ने भगवान के आदेश का पालन किया और वरुथिनी एकादशी का विधिपूर्वक व्रत किया। इसके प्रभाव से उसे पूर्व जन्म के दोषों से मुक्ति प्राप्त हुई और वह अंत में मोक्ष को प्राप्त हुआ।


वरुथिनी एकादशी की महिमा

भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को वरुथिनी एकादशी की महिमा बताते हुए कहा—

“हे धर्मराज! यह एकादशी बड़ी ही पुण्यदायिनी है। जो मनुष्य इसका व्रत करता है, वह स्वर्णदान, भूमि-दान, गौदान, अन्नदान, कन्यादान जैसे महादानों का फल प्राप्त करता है। इस दिन व्रती को ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए उपवास करना चाहिए और रात्रि में जागरण कर भगवान विष्णु का भजन करना चाहिए।”

श्रीकृष्ण ने कहा कि यह एकादशी समस्त पापों को हरने वाली है, विशेषकर जिन व्यक्तियों ने अज्ञातवश या जानबूझकर पाप किए हों, उनके लिए यह एकादशी प्रायश्चित्त रूप में उत्तम है।


व्रत विधि

वरुथिनी एकादशी की व्रत विधि इस प्रकार है:

  • एक दिन पूर्व अर्थात दशमी को सात्विक भोजन करें और रात्रि को ब्रह्मचर्य का पालन करें।

  • एकादशी को प्रातः स्नान करके भगवान विष्णु की प्रतिमा को स्नान कराएं, पीत वस्त्र पहनाएं और तुलसी दल, पीले फूल, दीप-धूप से पूजा करें।

  • ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप करें।

  • दिन भर उपवास करें। यदि पूर्ण उपवास संभव न हो, तो फलाहार करें।

  • रात्रि में जागरण करें और भगवान का कीर्तन करें।

  • द्वादशी के दिन ब्राह्मण या किसी जरूरतमंद को अन्न, वस्त्र या दक्षिणा देकर व्रत का पारण करें।


इस दिन क्या न करें
शास्त्रों के अनुसार वरुथिनी एकादशी पर कुछ नियमों का विशेष पालन करना चाहिए:

  • झूठ न बोलें, वाणी को संयमित रखें।

  • हिंसा न करें, मांस-मदिरा से पूर्ण परहेज रखें।

  • क्रोध, द्वेष, अहंकार आदि का त्याग करें।

  • दांत साफ करने के लिए नीम की दातुन करें, ब्रश का त्याग करें।

  • कांस्य पात्र में भोजन न करें।

  • शयन भूमि पर करें, पलंग पर न सोएं।

  • बाल, नाखून आदि न कटवाएं।



व्रत का फल
इस एकादशी का व्रत करने से:

  • पाप नष्ट होते हैं, पूर्व जन्मों के दोष मिटते हैं।

  • आयु में वृद्धि होती है और स्वास्थ्य लाभ होता है।

  • व्यक्ति का भाग्य जागृत होता है और उसे सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।

  • मोक्ष की प्राप्ति होती है, अर्थात आत्मा का कल्याण होता है।


निष्कर्ष
वरुथिनी एकादशी न केवल धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, बल्कि यह आत्मिक शुद्धि का भी मार्ग है। यह व्रत व्यक्ति के भीतर निष्ठा, संयम, और भक्ति को जागृत करता है। भौतिक संसार के बंधनों से मुक्त होने का साधन यही है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को इस एकादशी का व्रत श्रद्धा और नियमपूर्वक करना चाहिए ताकि उसका जीवन पुण्यमय और मोक्षदायक हो सके।


 आचार्य दिनेश पाण्डेय शास्त्री (मुम्बई & उत्तराखण्ड)


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