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मेष संक्रांति (बैशाख संक्रांति) 14 अप्रैल 2025

मेष संक्रांति (बैशाख संक्रांति) 14 अप्रैल 2025

मेष संक्रांति (बैशाख संक्रांति) कुमाऊँ उत्तराखंड की लोक आस्था और सांस्कृतिक चेतना का पर्व

भारत विविधताओं का देश है, और यहाँ का हर क्षेत्र अपने-अपने त्यौहारों और सांस्कृतिक परंपराओं से समृद्ध है। उत्तराखंड का कुमाऊँ क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है। यहाँ मेष संक्रांति एक विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक पर्व के रूप में मनाई जाती है। देश के विभिन्न हिस्सों में जहाँ इसे बैसाखी, पुथंडु, विषु, या बोहाग बिहू के रूप में जाना जाता है, वहीं कुमाऊँ में इसे “बैशाख संक्रांति”या “मेष संक्रांति” भी कहा जाता है।


मेष संक्रांति सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने का दिन होता है, जिससे हिंदू नववर्ष की भी शुरुआत मानी जाती है। यह अप्रैल महीने में आता है, जब मौसम में बदलाव होता है और नई फसलें पककर तैयार होती हैं। मेष संक्रांति को ‘संक्रांति का राजा’ भी कहा जाता है क्योंकि यह सौर कैलेंडर का पहला दिन होता है।

बैसाखी (जिसे वैसाखी भी कहा जाता है) एक प्रमुख त्योहार है जो विशेष रूप से पंजाब और सिख समुदाय के लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। इस वर्ष यह पर्व 14 अप्रैल 2025 को मनाया जायेगा। और मुख्य रूप से खरीफ की फसल (गेहूं) के पकने और काटने की खुशी में मनाया जाता है।

कुमाऊँ में मेष संक्रांति का महत्व

कुमाऊँ में मेष संक्रांति को सिर्फ एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि आस्था, परंपरा और प्रकृति के साथ जुड़ाव का उत्सव माना जाता है। यह दिन नए आरंभ, शुभ कार्यों, और सामाजिक मेलजोल के लिए आदर्श माना जाता है। गाँव-गाँव में मेले लगते हैं, पारंपरिक गीत-नृत्य होते हैं और लोग स्नान कर पुण्य कमाते हैं।


सांस्कृतिक परंपराएँ और रीति-रिवाज

कौथीग और मेलों का आयोजन

कुमाऊँ के विभिन्न हिस्सों—जैसे गंगोलीहाट, धारचूला, चंपावत, बेरीनाग, अल्मोड़ा आदि—में कौथीग (स्थानीय मेले) का आयोजन होता है। यहाँ स्थानीय हस्तशिल्प, भोजन, लोकगीत और नृत्य की झलक देखने को मिलती है।

धार्मिक स्नान और पूजा

लोग इस दिन प्रातःकाल सरोवरों, नदियों या कुण्डों में स्नान करते हैं। इसे आत्मशुद्धि का प्रतीक माना जाता है। स्नान के बाद कालीचौड़, झूलाघाट, और अन्य मंदिरों में पूजा-अर्चना की जाती है।

दान पुण्य की परंपरा

मेष संक्रांति को दान-पुण्य और धर्म-कर्म का दिन माना जाता है। लोग अन्न, वस्त्र, तिल, गुड़, और धन का दान करते हैं। खासकर तिल का सेवन और दान इस दिन शुभ माना जाता है।

पारंपरिक व्यंजन

इस पर्व पर कुमाऊँनी रसोई में विशेष पकवान बनते हैं जैसे सिंघल, आलू के गुटके, भट्ट की चुरकानी, अरसा, और झोलि भात। इन व्यंजनों का स्वाद पर्व की खुशियों में चार चाँद लगा देता है।


लोकगीत और लोकनृत्य

इस दिन लोकसंस्कृति की एक अनोखी झलक देखने को मिलती है। चांचरी, झोड़ा, और थड़िया जैसे लोकनृत्य समूहों में किए जाते हैं। ढोल-दमाऊ की थाप पर गाए जाने वाले गीतों में प्रकृति, देवी-देवताओं और सामाजिक कथाओं की झलक मिलती है। यह सांस्कृतिक समृद्धि को पीढ़ी दर पीढ़ी जीवित बनाए रखने का माध्यम है।


प्रकृति और पर्व का संबंध

उत्तराखंड के पर्वतीय अंचलों में प्राकृतिक चक्रों और कृषि कार्यों का गहरा संबंध त्यौहारों से रहा है। मेष संक्रांति बुवाई और कटाई के मध्य का समय होता है, जब किसान थोड़ी राहत महसूस करते हैं और उत्सव के साथ नई ऊर्जा प्राप्त करते हैं।


मेष संक्रांति की सांस्कृतिक झलकियाँ

बागेश्वर का उत्तरायणी मेला

बागेश्वर में सरयू नदी के तट पर आयोजित उत्तरायणी मेला कुमाऊँ की सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक है। यह मेला धार्मिक, सांस्कृतिक और व्यापारिक गतिविधियों का केंद्र बनता है, जहाँ दूर-दराज़ से लोग स्नान, पूजा और खरीदारी के लिए आते हैं।

हरिद्वार में शाही स्नान

हरिद्वार में मेष संक्रांति के अवसर पर गंगा नदी में शाही स्नान का आयोजन होता है। साधु-संतों और श्रद्धालुओं की भारी भीड़ इस पावन अवसर पर गंगा में डुबकी लगाकर पुण्य अर्जित करती है।

उत्तरकाशी का माघ मेला

उत्तरकाशी में माघ मेला धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र है। यहाँ भागीरथी नदी में स्नान, देवी-देवताओं की डोलियों की शोभायात्रा, और स्थानीय हस्तशिल्प की प्रदर्शनी होती है।

कुमाऊँनी लोकनृत्य और संगीत

मेष संक्रांति के अवसर पर कुमाऊँ क्षेत्र में चांचरी, झोड़ा, और भगनौला जैसे पारंपरिक लोकनृत्य प्रस्तुत किए जाते हैं। ढोल-दमाऊ की थाप पर गाए जाने वाले लोकगीत इस पर्व की रौनक बढ़ाते हैं।

 आचार्य दिनेश पाण्डेय शास्त्री (मुम्बई & उत्तराखण्ड)


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