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श्रीहरि को सृष्टि का अधिकार देकर भगवान शिवका अन्तर्धान होना



परमेश्वर शिव बोले - उत्तम व्रतका पालन करने वाले हरे ! विष्णो ! अब तुम मेरी दूसरी आज्ञा सावधान होकर सुनो । उसका पालन करनेसे तुम सदा समस्त लोकोंमें माननीय और पूजनीय सदा बने रहोगे । ब्रह्माजी के द्वारा रचे गये लोक में जब कोई दुःख या संकट उत्पन्न हो , तब तुम उन सम्पूर्ण दुःखोंका नाश करनेके लिये सदा तत्पर रहना । तुम्हारे सम्पूर्ण दुस्सह कार्यों में तुम्हारी सहायता करूँगा । तुम्हारे जो दुर्जेय और अत्यन्त शत्रु {उत्कट} होंगे उन सबको में शीघ्र ही मार गिराऊँगा । विष्णो ! तुम नाना प्रकार के अवतार धारण करके लोक में अपनी उत्तम कीर्ति का विस्तार करो और सबके उद्धार के लिये हमेशा तत्पर रहो । तुम रुद्रके ध्येय हो और रुद्र तुम्हारे ध्येय हैं. तुम में और रुद्र में कुछ भी अन्तर नहीं हैं।
जो मनुष्य रुद्रका भक्त होकर तुम्हारी निन्दा करेगा , उसका सारा पुण्य तत्काल भस्म हो जायगा । पुरुषोत्तम विष्णो ! तुमसे द्वेष करनेके कारण मेरी बात सत्य है , सत्य है । इसमें संशय नहीं आज्ञासे उसको नरकमें गिरना पड़ेगा । यह है । तुम इस लोकमें मनुष्यों के लिये विशेषतः भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाले और भक्तोंके ध्येय तथा पूज्य होकर प्राणियोंका निग्रह और अनुग्रह करो । ऐसा कहकर भगवान् शिवने मेरा हाथ पकड़ लिया और श्रीविष्णुको सौंपकर उनसे कहा - ' तुम संकटके समय सदा इनकी सहायता करते रहना । सबके अध्यक्ष होकर सभीको भोग और मोक्ष प्रदान करना तथा सर्वदा समस्त कामनाओंका साधक एवं सर्वश्रेष्ठ बने रहना । जो तुम्हारी शरणमें आ जायेगा , वह निश्चय ही मेरी शरण में भी आ जायेगा । जो मुझमें और तुममें अन्तर समझता है या मतभेद करता है , वह अवश्य नरक में गिरता है ।
ब्रह्माजी कहते हैं - देवर्षे ! भगवान् शिवका यह वचन सुनकर मेरे साथ भगवान् विष्णुने सबको वशमें करनेवाले विश्वनाथको प्रणाम करके मन्दस्वरमें कहा श्रीविष्णु बोले - करुणासिन्धो ! जगन्नाथ शंकर ! मेरी यह बात ध्यानपूर्वक सुनिये । मैं आपकी आज्ञा के अधीन रहकर यह सब कुछ करूँगा । स्वामिन् ! जो मेरा भक्त होकर यदि आपकी निन्दा करेगा तो उसे आप निश्चय ही नरकवास प्रदान करें । नाथ ! जो आपका भक्त है.  वह मुझे अत्यन्त प्रिय है। जो ऐसा जानता है. उसके लिये मोक्ष दुर्लभ नहीं है । श्री हरि का यह कथन सुनकर दुःखहारी हरने उनकी बात का अनुमोदन किया. और नाना प्रकार के धर्मों का उपदेश देकर हम दोनों के हित की इच्छा से हमें अनेक प्रकार के वर दिये। इसके बाद भक्तवत्सल भगवान भोलेनाथ कृपापूर्वक हमारी ओर देखकर हम दोनों के देखते - देखते पल भर में वहीं अन्तर्धान हो गये । तभीसे इस लोकमें लिंग - पूजाका विधान चालू हुआ है । लिंगमें प्रतिष्ठित भगवान् शिव भोग और मोक्ष देनेवाले हैं । शिवलिंगकी जो वेदी या अर्घा है , वह महादेवीका स्वरूप है और लिंग साक्षात् महेश्वरका । लयका अधिष्ठान होनेके कारण भगवान् शिवको लिंग कहा गया है ; क्योंकि उन्हींमें निखिल जगत्का लय होता है । महामुने ! जो शिवलिंग के समीप कोई कार्य करता है या करवाएगा , उसके पुण्य फल का वर्णन करने की शक्ति मुझमें नहीं है ।  
(शिवपुराण अध्याय १०)

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