
11 अगस्त, मंगलवार - अर्धरात्रि - व्यापिनी अष्टमी (गृहस्थियों के लिए) और 12 अगस्त, बुधवार - उदयकालिक अष्टमी ( वैष्णव , संन्यासियों के लिए )
इस बार जन्माष्टमी का त्योहार इसलिए भी खास है क्योंकि 27 साल बाद बहुत अद्भुत संयोग बन रहा है। 1993 के बाद जन्माष्टमी पर पहली बार बुधष्टमी और सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार तुला, मकर और मीन राशि के लोग इससे अधिक लाभान्वित होंगे।
गतवर्षों की भान्ति इस वर्ष (वि . संवत् २०७७ में) भी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रतादि का पर्व स्मार्त और वैष्णव भेद से दो दिन आ रहा है । परम्परया इस व्रत के सम्बन्ध में दो मत प्रचलित हैं । स्मार्त्त लोग (सामान्य गृहस्थी) अर्धरात्रि का स्पर्श होने पर सप्तमीयुता अष्टमी में व्रत / उपवास करते हैं । क्योंकि इनके अनुसार भगवान् श्रीकृष्ण का|अवतार अर्धरात्रि के समय (रोहिणी नक्षत्र एवं वृष राशि में चन्द्रोदय होने पर) अष्टमी | तिथि में हुआ था । जबकि वैष्णव मतालम्बी अर्धरात्रि अष्टमी की उपेक्षा करके नवमी विद्धा अष्टमी में व्रतादि करने में विश्वास रखते हैंं|
स्मार्तानां गृहिणी पूर्वा पोष्या , निष्काम वनस्थेविधवाभिः वैष्णवैश्च परै वा पोष्या । वैष्णवास्तु अर्द्धरात्रिव्यापिनीमपि रोहिणी सप्तमी विद्धा अष्टमी परित्यज्य नवमी युतैव ग्राह्या ।। (धर्मसिन्धु)
अधिकांश शास्त्रकारों ने अर्धरात्रि अष्टमी में ही व्रत , पूजन एवं उत्सव मनाने की - पुष्टि की है । श्रीमद्भागवत् , श्रीविष्णु पुराण, वायु पुराण , अग्नि - पुराण , भविष्य आदि पुराण भी तो अर्द्धरात्रि युक्ता अष्टमी में ही श्री भगवान् के जन्म की पुष्टि करते हैं|
“गतेऽर्धरात्रसमये सुप्ते सर्वजने निशि ।। भाद्रेमास्य - सिते पक्षेऽष्टम्यां ब्रह्मक्षसंयुजि ।। सर्वग्रहशुभे काले - प्रसन्नहृदयाशये आविरासं निजेनैव रूपेण हि अवनीपते । " (भविष्य - पुराण)
धर्मसिन्धुकार का भी यही अभिमत है
कृष्ण जन्माष्टमी निशीथ व्यापिनी ग्राह्या । पूर्वदिन एव निशीथ योगे पूर्वा ।।
इस प्रकार सिद्धान्तरूप में तत्काल व्यापिनी ( अर्द्धरात्रि - व्यापिनी ) ( अर्द्धरात्रि व्याप्त ) तिथि अधिक शास्त्र - सम्मत एवं मान्य रहेगी । कु ही छ आचार्य तो केवल अष्टमी तिथि को ही जन्माष्टमी का निर्णायक तत्त्व मानते हैं । रोहिणी से युक्त होने पर तो | श्रीकृष्ण जन्माष्टमी ' जयन्ती ' संज्ञक कहलाती है ।
'कृष्णाष्टम्यां भवेद्यत्रकलैका रोहिणी यदि । जयन्ती नाम सा प्रोक्ता उपोष्या सा प्रयत्नतः ।।' (अग्निपुराण)
ध्यान रहे भगवान् श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथुरा - वृन्दावन में तो वर्षों की परम्परानुसार भगवान् श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के जन्मोत्सव सूर्य - उदयकालिक एवं नवमी विद्धा श्रीकृष्ण अष्टमी मनाने की परम्परा है , जबकि उत्तरी भारत में लगभग सभी प्रान्तों में सैंकड़ों वर्षों से अर्द्धरात्रि एवं चन्द्रोदय व्यापिनी जन्माष्टमी में व्रतादि ग्रहण करने की परम्परा है । परन्तु केन्द्रीय सरकार अर्धरात्रि कालिक अष्टमी की उपेक्षा करके प्रायः उदयकालिक अष्टमी (नवमीयुता) को ही सरकारी अवकाश घोषित कर देती है तथा मथुरा आदि के मन्दिरों में प्राय : उदयकालिक वाली श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पुण्य पर्व मनाया जाता है।
इस वर्ष 11 अगस्त, 2020 ई. मंगलवार को प्रात :09 घंटा 07 मि . बाद, अर्द्धरात्रि - व्यापिनी अष्टमी , भरणी नक्षत्र कालीन श्रीकृष्ण - जन्माष्टमी के व्रत के संकल्प, व्रत, जपानुष्ठान का माहात्म्य होगा । स्मार्त लोग (सामान्य गृहस्थी) इसी दिन व्रत का आरम्भ करके आगामी दिवस ( 12 अगस्त , बुधवार) को व्रत का पारण एवं जन्मोत्सव मनाएंगे । जबकि वैष्णव (संन्यासी आदि) मतावलम्बी 12 अगस्त , 2020 ई ., बुधवार को उदयकालिक अष्टमी जोकि प्रातः 11 घंटा - 17 मि . तक रहेगी , तदुपरान्त अर्द्धरात्रि - व्यापिनी नवमी तिथि, कृतिका नक्षत्र, वृष राशिस्थ चन्द्रमा में व्रत , जपानुष्ठान एवं जन्मोत्सव मनाएंगे।
आचार्य दिनेश पाण्डेय
आचार्य दिनेश पाण्डेय





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