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शारदीय नवरात्र मुहूर्त एवं तिथि निर्णय 17 अक्टूवर 2020

शास्त्र के अनुसार सूर्योदय के बाद 10 घडी तक या मध्याह्न में अभिजित् मुहूर्त (दिन के अष्टम मुहूर्त) के समय शुभ शुभफल प्रतिपदा में नवरात्रम् और कलश स्थापन किया जाता है। प्रतिपदा तिथि की पहली 16 घड़ियाँ और चित्रा नक्षत्र और  वैधता  योग का पूर्वार्ध भाग कलश स्थापन के लिए वर्जित काल है। "प्रतिपद् आद्य - षोड्शनाड़ीनिषेधः , चित्रा - वैधृतियोग निषेधश्च उक्तकाल अनुरोधेन सति सम्भवे पालनीयः .. '' ( धर्मसिन्धु) इस वर्ष प्रतिपदा तिथि की प्रथम 16 घड़ियां 17 अक्टूबर 2020 ई को प्रात: लगभग 7 घं 25 मि तक है अतएव अपने - अपने स्थानीय सूर्योदय के पश्चात् प्रात: 7 घं  - 25 मि बाद में ही स्थापन,  नवरात्रारम्भ,  दीपूजन आदि को करना चाहिए।

अल्मोड़ा उत्तराखंड के अनुसार

घटस्थापना मुहूर्त

प्रातः 7:41 से  09:06

दोपहर 11:56 से 04:12

अभिजीत मुहूर्त 11:34 से  12:19


रामनगर उत्तराखंड के अनुसार

घटस्थापना मुहूर्त

प्रातः  7:43 से  09:08

दोपहर  11:59 से 04:14

अभिजीत मुहूर्त  11:36 से  12:21


मुम्बई महाराष्ट्र के अनुसार

घटस्थापना मुहूर्त

प्रातः  08:02 से  09:29

दोपहर  12:24 से 04:45

अभिजीत मुहूर्त  12:00 से  12:47


दिल्ली के अनुसार

घटस्थापना मुहूर्त

प्रातः  07:50 से  09:15

दोपहर  12:06 से 04:22

अभिजीत मुहूर्त  11:43 से  12:29

निर्णय सिंधु मैं कलश स्थापन के लिए प्रतिपदा में चित्रा नक्षत्र वैधृति योग  वर्जित बताया गया है, देव पुराण, भविष्य पुराण, रुद्रयामल आदि ग्रंथों में भी प्रतिपदा से युक्त चित्रा नक्षत्र व वैधृति योग मैं घट स्थापन वर्जित कहा गया है  वर्जित  योग में  घट रहा है। स्थापन से पुत्र का नाश और चित्रा नक्षत्र में धन का नाश होता है इसलिए चित्रा व वर्जित  योग में कुंभ (घट) का स्थापन है।

संपूर्ण प्रतिपदा चित्रा या वैधृति योग से युक्त हो तो मध्याह्न सूर्य में अभिजीत मुहूर्त में घट स्थापन करना चाहिए।

(वैधताग्रिक्तकथनम्) प्रतिपदी च वैधृत्यादिरनिषेधो भार्गवार्चनपादप्यम् देवीपुराणे - त्वाष्ट्र विविधरितियुत चेतस्य पञ्चुशुश्रेण। तयोरन्ते विधात्यं कलशेशनं गृहे ।। और प्रतिपदा में वैधता आदि योग का प्रतिबंध के अंत में घर में कलश स्थापन  करे। चित्रावैधृतियुक्तिपि द्वितीयातु चेतसैव नव्यत्यक्म दुर्गोत्सवे भद्रस्विता चेतप्रतिपत्तु लभ्यते विरुद्धयोगैरपि सङ्गता सती। सावापराले विबुधै विविधे श्रीपुत्रराज्यादिविरृद्धिहेतु: विदः इति। दुर्गोत्सव में कहा गया है कि - चित्रा और वैधत्व से युक्त द्वितीया सहित हो तो वही ग्रहण करें। भद्रा न्वित यदि प्रतिपदा का लाभ हो तो विरुद्ध योगा से भी वह संगत हो तो अपराह्न में ही कर लेना चाहिए। वह श्री , पुत्र , राज्य आदि के वृद्धि का कारण होता है। (यदा तु वैधान्यदिप्रीहारेण प्रतिपन्न लभ्यते तदा कर्मनिर्णयैः) यदा तु वैधृतिपादिप्रिहारेन प्रतिपन्न लभ्यते तुयोक्तं तत्रैवेन - प्रतिपद्यावेशं मासि भवेद्वैधोग्योग्यो। श्राद्यपादौ परित्यज्य दर्शनम्न्नवत्रकम् ।। इति। प्रतिपदा जब वैधता आदि परिहार न मिलती हो तो वही पर कात्यायन ने कहा है कि - अश्विन मास की प्रतिपदातिथि में वैधता और चित्रा हो तो आदि के दोपाद को त्याग कर नवरात्र का प्रारंभ करें। भविष्येपी - चित्रावैधज्ञानसम्पूर्ण प्रतिपद औरद्भवेन्नृप। तत्र्य ह्योशास्त्रोस्वादस्मृतिरिषेण तु पूजनम् ।। इति। भविष्यपुराण में भी कहा गया है कि हे नृप, चित्रा और वैधत्व से सम्पूर्ण प्रतिपदा हो तो आदि के तीन अंश त्याग कर चतुर्थ अंश में पूजन करे। रुद्रमयले.पि - वैधृतौ पुत्रनाश: सचचित्रों धननाशनम्। तस्मान्न स्थापयेत्कुम्भं चित्र वैधृतौ तथा। सम्पूर्ण प्रतिपद्येव चित्रायुक्ता यदा भवेत्। वैधित्र्यप युक्ता मट्टत्व मध्यन्दिने रवौ ।। अभिजितु मुहूतं यत्तत्र स्थापनमिष्यतेइति इति। चित्रादिनिषेधे मूलं चिन्त्यम्। रुद्रयामल में भी कहा गया है कि - वैधता में पुत्र का नाश होता है और चित्रा में धन का नाश होता है। इसलिए चित्रा और वैधता में स्थापन न करे। यदि संपूर्ण प्रतिपदा चित्रा या वैधृति से युक्त हो तो मध्यान्ह के सूर्य में और अभिजित् मुहूर्त में घट स्थापना होगी गी। चित्रादि निषेध में मूल (प्रमाण) चिन्तनीय।

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2 टिप्पणियाँ
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