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होलिका दहन मुहूर्त 7 मार्च 2023

 होलिका दहन कथा एवं मुहूर्त 28 मार्च 2021


होलिका दहन हिंदुओं का एक प्रमुख पर्व है जिसमें होली के एक दिन पहले यानी फाल्गुन पूर्णिमा को संध्या के समय होलिका का सांकेतिक रूप से दहन किया जाता है होलीका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत के पर्व के रूप में मनाया जाता है

होलिका दहन के मुहूर्त के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिये -

भद्रा रहित, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा तिथि, होलिका दहन के लिये उत्तम मानी जाती है। यदि भद्रा रहित, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा का अभाव हो परन्तु भद्रा मध्य रात्रि से पहले ही समाप्त हो जाए तो प्रदोष के पश्चात जब भद्रा समाप्त हो तब होलिका दहन करना चाहिये। यदि भद्रा मध्य रात्रि तक व्याप्त हो तो ऐसी परिस्थिति में भद्रा पूँछ के दौरान होलिका दहन किया जा सकता है। परन्तु भद्रा मुख में होलिका दहन कदाचित नहीं करना चाहिये। धर्मसिन्धु में भी इस मान्यता का समर्थन किया गया है। धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार भद्रा मुख में किया होली दहन अनिष्ट का स्वागत करने के जैसा है जिसका परिणाम न केवल दहन करने वाले को बल्कि शहर और देशवासियों को भी भुगतना पड़ सकता है। किसी-किसी साल भद्रा पूँछ प्रदोष के बाद और मध्य रात्रि के बीच व्याप्त ही नहीं होती तो ऐसी स्थिति में प्रदोष के समय होलिका दहन किया जा सकता है। कभी दुर्लभ स्थिति में यदि प्रदोष और भद्रा पूँछ दोनों में ही होलिका दहन सम्भव न हो तो प्रदोष के पश्चात होलिका दहन करना चाहिये।

इस वर्ष होलिका दहन 07 मार्च को किया जाएगा और 8 मार्च को रंग वाली होली, धुलण्डी, छरड़ी खेली जाएगी. पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 06 मार्च को शाम 04 बजकर 16 मिनट पर होगी और इसका समापन 07 मार्च को शाम 06 बजकर 9 मिनट पर होगा

होलिका दहन मुहूर्त 7 मार्च 2023 

होलिका दहन मुहूर्त - 06:14 PM से 08:41 PM

अवधि - 02 घण्टे 27 मिनट्स


पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ 6 मार्च 2023 को 04:16 PM बजे

पूर्णिमा तिथि समाप्त - 7  मार्च 2023 को 6:9 PM बजे

होलिका दहन पर प्रमुख कथा

प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था पिता के लाख कहने के बावजूद पहलाद विष्णु की भक्ति करता रहता था और आसुर पुत्र होने के बावजूद नारद मुनि की शिक्षा के परिणाम स्वरूप प्रह्लाद महान नारायण भक्त था असुराधिपति हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को मारने की कई बार कोशिश की परंतु भगवान विष्णु जी की असीम कृपा से हिरण्यकश्यप प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं कर सके असुर राजा की बहन होलिका को भगवान शंकर से ऐसी चादर मिली थी जिसे ओढने से अग्नि उसे जला नहीं सकती थी होलिका उस चादर को ओढ़कर प्रह्लाद को गोद में लेकर जलती हुई आग की चिता पर बैठ गई दैवयोग से होलिका जल गई और प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ इस प्रकार हिंदुओं के कई अन्य पर्वों की भांति ही होलिका दहन भी बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है

 आचार्य दिनेश पाण्डेय (मुम्बई & उत्तराखण्ड)


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