
हेमाद्री के अनुसार जिनके पुत्र हैं उन्हें कृष्ण पक्ष की एकादशी व्रत नहीं करना चाहिए
एकादशी भारतीय हिन्दू धर्म का एक प्रमुख (उपवास) व्रत है यह एकादशी व्रत माह में दो बार आता है पहली पूर्णिमा के बाद और दूसरी अमावस्या के बाद आती है|
पूर्णिमा की बात आने वाली एकादशी हो कृष्ण पक्ष की एकादशी कहा जाता है और अमावस्या के बाद आने वाली एकादशी को शुक्ल पक्ष की एकादशी कहा जाता है|
साल भर में 24 एकादशी आती हैं कभी-कभी अधिक मास एवं मलमास आ जाने से इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है जो भिन्न-भिन्न नामों से जानी जाती है|
हेमाद्री (चतुर्वर्ग चिन्तामणि) के अनुसार जिनके पुत्र हैं उन्हें कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत नहीं करना चाहिए|
ग्रहस्थीयों के लिए केवल शुक्ल पक्ष की एकादशी का ही व्रत करना चाहिए|
एकादशी व्रत परिचय
भगवान श्री कृष्णचन्द्र अर्जुन से बोले कि एक बार नैमिषारण्य में शौनक आदि अट्ठासी हजार ऋषि एकत्रित हुये , उन्होंने सूतजी से प्रार्थना की हे सूतजी ! कृपाकर एकादशियों का महात्म्य सुनाने की कृपा करें । सूतजी बोले- हे महर्षियों ! एक वर्ष में बारह महीने होते हैं और एक महीने में दो एकादशी होती हैं , सो एक वर्ष में चौबीस एकादशी हुई । जिस वर्ष में लौंद मास ( अधिक मास ) पड़ता है , उस वर्ष दो एकादशी और बढ़ जाती हैं । इस तरह कुल छब्बीस एकादशी होती हैं । उनके नाम ये हैं -
1- उत्पन्ना , 2 - मोक्षदा ( मोक्ष को देने वाली ) , 3- सफला ( सफलता देने वाली ) 4 - पुत्रदा ( पुत्र को देने वाली ) , 5 - षटतिला , 6- जया 7- विजया , 8- आमलकी , 9- पापमोचनी ( पापों को नष्ट करने वाली ) , 10- कामदा , 11 बरुथनी , 12 - मोहनी , 13 - अपरा , 14 निर्जला , 15 - योगिनी , 16 - देवशयनी , 17 कामिका , 18 पुत्रदा , 19- अजा , 20 परिवर्तिनी , 21 इन्दिरा , 22- पाशांकुशा , 23 - रमा , 24- देवोत्थानी एवं अधिक मास की दोनों एकादशियों के नाम 25- पद्मिनी और 26 - परमा हैं । ये सब एकादशी यथानाम तथाफल देने वाली है।
एकादशियों के महात्म्य का वर्णन
जो पुण्य चन्द्र या सूर्य ग्रहण में स्नान या दान से होता है , तथा जो पुण्य अन्न दान , जल ढान , स्वर्ण दान , भूमि दान गौ दान , कन्या दान तथा अश्वमेघादि यज्ञ करने से होता है । जो पुण्य तीर्थ यात्रा तथा कठिन तपस्या करने से होता है , उससे अधिक पुण्य एकादशी व्रत रखने से होता है । एकादशी व्रत रखने से शरीर स्वस्थ रहता है , अन्तड़ियों की मैल दूर हो जाती है , हृदय शुद्ध हो जाता है , श्रद्धा भक्ति उत्पन्न हो जाती है । प्रभु को प्रसन्न करने का मुख्य साधन एकादशी।
एकादशी व्रत करने वाले के पितृ कुयोनि को त्याग कर स्वर्ग में चले जाते हैं , एकादशी व्रत करने वाले के दस पुरखे पितृ पक्ष के और दस पुरखे मातृ पक्ष के और दस पुरखे पत्नी पक्ष के बैकुण्ठ को जाते हैं । दूध , पुत्र , धन और कीर्ति को बढ़ाने वाला एकादशी का व्रत है , एकादशी का जन्म भगवान् के शरीर से हुआ है , प्रभु के समान पतित पावनी है , अतः आपको लाखों प्रणाम हैं।
एकादशी व्रत की विधि
व्रतधारी को दशमी के दिन मांस और प्याज तथा मसूर की दाल इत्यादि निषेध वस्तुओं का त्याग करना चाहिए , रात्रि को ब्रह्मचर्य रखे , स्त्री से रमण नहीं करना चाहिए । प्रातः एकादशी को लकड़ी का दाँतुन न करें , निम्बू , जामुन या आम के पत्ते लेकर चबा ले और ऊंगली से कंठ शुद्ध करले , वृक्ष से पत्ता तोड़ना भी वर्जित है , अतः स्वयं गिरा हुआ पत्ता लेकर सेवन करे , फिर स्नान कर मन्दिर में जाना चाहिए , गीता पाठ करना या सुनना चाहिए , प्रभु के सामने यह प्रण करना चाहिए कि आज मैं चोर , पाखण्डी और दुराचारी मनुष्य से बात नहीं करूँगा और न किसी के दिल को दुखाऊँगा ● एकादशी महात्म गौ , ब्राह्मण को फलाहार देकर प्रसन्न करुँगा , रात्रि को जागरण कर कीर्तन करुँगा , " ॐ नमो भगवते वासुदेवाय " द्वादश अक्षर के मंत्र का जाप करुँगा , राम , कृष्ण , नारायण इत्यादि विष्णु सहस्त्र नाम को कण्ठ का भूषण बनाऊँगा , ऐसी प्रतिज्ञा करके मन्दिर में प्रार्थना करे कि मेरी लाज आपके हाथ है अतः मेरे प्रण को पूरा करना।
यदि अचानक भूलकर किसी निन्दक से बात कर बैठे , तो उसका पाप दूर करने को सूर्य नारायण के दर्शन तथा धूप - दीप से भगवान् की पूजा कर क्षमा मांग लेनी चाहिए , एकादशी के दिन झाडू नही देनी चाहिए , चींटी आदि जीव मर जाते हैं तथा बाल नहीं कटाने चाहियें , अधिक न बोलना चाहिए , अन्न का दान देना चाहिए , अन्न दान लेना भी वर्जित है , झूठ कपटादि कुकर्म न करना चाहिए और दशमी के साथ मिली हुई एकादशी वृद्ध मानी जाती है , शिव उपासक तो इसको मान लेते हैं । वैष्णवों को योग्य द्वादशी से मिली हुई एकादशी का व्रत करना चाहिये और त्रयोदशी आने से पूर्व व्रत पूर्ण कर लेना चाहिए।
फलाहारी को गोभी , गाजर , शलजम , पालक , कुलफा का साग इत्यादि न खाना चाहिये और मूली , आम , अंगूर , केला , बादाम , पिशता इत्यादि अमृत फलों का सेवन करना चाहिए । प्रत्येक वस्तु प्रभु को भोग लगाकर तथा तुलसीदल छोड़कर खानी चाहिये , द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को मिष्ठान दक्षिणा से प्रसन्न कर परिक्रमा ले लेनी चाहिये , किसी सम्बन्धी की मृत्यु हो जाये तो उस दिन एकादशी व्रत रखकर उसका फल उसे संकल्प कर देना चाहिए और गङ्गा जी में पुष्प अस्थि प्रवाह करने पर भी एकादशी व्रत रखकर फल प्राणी के निमित्त दे देना चाहिये , प्राणी मात्र को अन्तर्यामी का अवतार समझकर किसी से छल कपट न करना , मधुर भाषण करना , कोई अपमान करे तो उसे आशीर्वाद देना , क्रोध मत करना , क्रोध चाण्डाल का अवतार है आप देवता रूप हो संतोष कर लेना सन्तोष का फल सर्वदा मधुर होता है , सत्य भाषण करना , मन में दया रखना । इस विधि से व्रत करने वाला दिव्य फल को प्राप्त करता है।
महाराज जी आपका व्हाट्सएप नम्बर हो या आप मेरा नम्बर 9424017071 को एड कर लीजिए ताकि मुझे सही दिशा निर्देश व जानकारी प्राप्त हो सके जय श्री कृष्ण
जवाब देंहटाएंआपकी अमूल्य टिप्पणियों हमें उत्साह और ऊर्जा प्रदान करती हैं आपके विचारों और मार्गदर्शन का हम सदैव स्वागत करते हैं, कृपया एक टिप्पणी जरूर लिखें :-