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'नल' नामक नव - सम्वत्सर का फल विक्रमी संवत् 2079

'नल' नामक नव - सम्वत्सर का फल 

नव विक्रमी संवत् २०७९ के आरम्भ में बार्हस्पत्यमान (गुरुमान) से शिव (रुद्र) विंशति के अन्तर्गत 'दशम युग' का पंचम 'नल' नामक (सम्वत्सरों में 50 वाँ) नया संवत्सर विद्यमान होगा। अर्थात् 2 अप्रैल 2022 ई. (नव विक्रमी संवत् का आरम्भ) से पहिले ही 'नल' नामक सम्वत्सर प्रारम्भ हो चुका होगा। 

आप सभी को हिंदू नव वर्ष एवं 'नल' नामक नव संवत्सर की हार्दिक शुभकामनाएं

संवत्सर का आरम्भ लगभग 28 मार्च 2022 से हो गया है। मेषऽर्के समये भुक्त मासादि ० /१६५५।१२ " , भोग्य मास दिनादि ११।१३।१४१४८ हैं। ध्यान रहे नया विक्रमी संवत्सर का प्रवेश 1 अप्रैल 2022 ई . शुक्रवार को दोपहर 11 घं . - 54 मि. पर रेवती नक्षत्र एवं ऐन्द्र योग कालीन मिथुन लग्न में प्रवेश करेगा। 

परन्तु शास्त्र - नियमानुसार नवसंवत् तथा राजादि का निर्णय चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के वारादि अनुसार ही किया जाता है। तदनुसार 'नल' नामक नव वि. संवत् २०७९ तथा चैत्र (वासन्त) नवरात्रों का प्रारम्भ 2 अप्रैल शनिवार (गते २० चैत्र ) रेवती नक्षत्र तथा ऐन्द्र योगकालीन में होगा। चैत्र (वासन्त) नवरात्र अर्थात् 2 अप्रैल शनिवार से जप, पाठ, पूजन दान, व्रतानुष्ठान यज्ञादि धार्मिक अनुष्ठान कर्मों के आदि में संकल्पादि प्रयोग कार्यों में 'नल' नामक नव सम्वत्सर का प्रयोग होगा। 

वर्ष का राजा शनि तथा मन्त्री गुरु होगा। 'नल' सम्वत्सर का शास्त्रों में इस प्रकार से वर्णित है -

दुर्भिक्षं जायते घोरं राज्ञां दुर्मतिजं भयम् । 

बालाहानिश्च रोगेभ्यो नले ज्ञेया समन्ततः ॥ 

अर्थात् 'नल' नामक संवत्सर में देश में दुर्भिक्ष यानि अकालजन्य परिस्थितियां बनेंगी। फलस्वरूप आवश्यक वस्तुओं के मूल्यों में विशेष वृद्धि होगी। केन्द्रीय एवं राज्य सरकारों की दोषपूर्ण नीतियों के कारण परिस्थितियां और अधिक खराब एवं चिन्ताजनक बनेंगी। बच्चों में विशेष प्रकार के रोग फैलने से हड़कम्प मचेगा। 

'भविष्यफल भास्कर' अनुसार भी 'नल' सम्वत्सर होने से वर्ष में अग्निकाण्ड तथा अग्नि से सम्बन्धित दुर्घटनाएं होने का भय अधिक रहे। वृष्टि (जल तथा अन्न) मध्यम रहे। अनाज के मूल्यों में वृद्धि होगी। राजाओं में क्षुब्धता के कारण युद्ध जैसी स्थिति निरन्तर बनी रहेगी । चोरी , डकैती , लूटमार जैसी दुर्घटनाओं में वृद्धि से जन - सामान्य में सदैव भय उपस्थित रहे। नलाब्दे मध्यसस्यार्घवृष्टिभिः प्रवराधरा। नृपसंक्षोभ - संजाता भूरितस्करभीतयः।। 

रोहिणी का वास - वि . संवत् २०७ ९ में मेष संक्रान्ति का प्रवेश 'पूर्वाफाल्गुनी' नक्षत्रकालीन हुआ। अतएव रोहिणी का वास 'समुद्र' में होगा । शास्त्र में इसका फल इस प्रकार लिखा गया है-

यदा पयोनिधि स्थले गतो विरंचिभं तदा । 

अतीव वर्षणं भवेत् समस्त धान्य वर्द्धनम् ॥ 

अर्थात् जिस वर्ष रोहिणी का वास 'समुद्र' पर हो तो उस वर्ष वर्षा अधिक होती है गेहूँ, धान्यादि सभी की पैदावार भी अच्छी होगी। परन्तु मध्य - भारत (जैसे - बिहार, म.प्र ., उड़ीसा, उ. प्रदेश आदि) के कुछ स्थलों पर बाढ़ - आदि प्रकोपों के कारण जन , धन , कृषि , आदि फसलों की हानि होने के संकेत हैं। परन्तु देश के अन्य भागों में धान्य , मक्का, चावल, तृण, फल - फूलों आदि की पैदावार अच्छी होगी। 

संवत् (समय) का वास - रोहिणी का वास 'समुद्र' पर होने से संवत् का वास 'माली' के घर में होगा। फलस्वरूप वर्षा विपुल मात्रा में होगी। ईख, धान् , चावल, तृण, घास, फूल व फलों की पैदावार अच्छी होगी। पर्वतीय प्रदेशों में कृषि व फूलों का उत्पादन अच्छा होगा, परन्तु इन सबके बावजूद प्रकार के कृषि उत्पाद, घी, तेल, दैनिक उपभोग्य वस्तुएँ, दालें, दूध तथा सोना, ताम्बा, चान्दी आदि धातुएँ तेज भाव होंगी 

मालिने प्रचुरा वृष्टिः। सर्ववस्तु समर्घं स्यान्मालाकारगृहे । 

संवत् (सम्वत्सर) का वाहन - वि . संवत् २०७ ९ का राजा शनि होने से सम्वत् का वाहन 'भैंसा' (महिष) होगा। कुछ विद्वान् संवत् का वाहन घोड़ा' भी मानते हैं । संवत्सर का वाहन 'भैंसा' अथवा घोड़ा होने से वर्षभर विषम वर्षा होगी अर्थात् असमान वर्षा होगी। कहीं उपयोगी वर्षा की कमी रहे तो कहीं अति वर्षा से बाढ़, भूस्खलन फसलों की हानि एवं अन्य प्राकृतिक प्रकोपों से जन, धन, सम्पदा की हानि का भय रहेगा राजनैतिक मतभेद एवं आरोप - प्रत्यरोप, सत्ता - परिवर्तन आदि घटनाक्रम होंगे। बाजारों महँगाई का रुख काले रंग की वस्तुएँ अधिक प्रिय अथवा महँगी होंगी। लोगों की प्रवृत्ति तामसिक बनेंगी। पूर्व - दक्षिण के देशों एवं राज्यों में प्राकृतिक प्रकोप होंगे। 

वि . संवत् २०७९ के दश - पदाधिकारियों का फल 

(1) वर्ष के राजा 'शनि' का फल  - 

दर्भिक्ष- मरकं रोगान् करोति पवनं तथा । 

शनैश्चराब्दो दोषांश्च विग्रहांश्चैव भूभुजाम् ।। 

अर्थात् वर्ष का राजा शनि हो तो उस वर्ष उपद्रव , युद्ध , दंगों , मारकाट के लिए अनेक देशों में अनुकूल वातावरण बनेगा । कहीं भूमण्डल पर विरोधी देशों के मध्य टकराव युद्धजन्य परिस्थितियां बनेंगी । बेमौसमी एवं बेमौका ( प्रतिकूल ) वर्षा होने से दुर्भिक्ष ( अकालजन्य ) की स्थिति बने । लोग विभिन्न प्रकार के पेचीदा रोगों के कारण परेशान पीड़ित रहें । जन - हानि व दुर्भिक्ष ( आकाल ) जैसी स्थितियां सामान्य मानी जाएंगी । किसी प्रदेश विशेष में अथवा देश में लोग दुर्भिक्ष , रोग , बाढ़ादि प्राकृतिक प्रकोपों के कारण अथवा आतंकी / साम्प्रदायिक घटनाओं आदि से परेशान ( पीड़ित ) होकर अन्य देशों / प्रदेशों पलायन करने को विवश होंगे। 

(2) सम्वत् के मन्त्री 'गुरु' का फल  - 

विविध - धान्ययुता खलु मोदिनी प्रचुर तोय - घना मुदिता भवेत् ।

नृपतयो जनपालन तत्पराः सुरगुरौ ननु मन्त्रिसमागते ।। 

अर्थात् सम्वत् का मन्त्री 'गुरु' (बृहस्पति) होने से सभी प्रकार के अनाजों जैसे गेहूँ, चावल, धान्य, मक्की आदि का पर्याप्त मात्रा में उत्पादन होगा। वर्षा भी प्रचुर में होगी। सरकार लोककल्याण, लोकलुभावन एवं विकासोन्मुखी बहु योजनाएँ बनाने तथा उनके क्रियान्वयन में प्रयासरत रहेगी।  शासन की इन लोकभावना नीतियों के कारण सर्वत्र प्रसन्नता एवं सन्तुष्टि (संतृप्तता) का वातावरण रहेगा। मजीठ, हल्दी, मक्का, लकड़ी, तेल, अलसी, रुई, कपास, कस्तूरी, केसर, वनस्पति घी, अनाज आदि के व्यापारी अच्छा मुनाफा प्राप्त कर सकेंगे। 

(3) सस्येश ' शनि ' का फल -

रविसुते यदि धान्यपतौ जनाः नृपतिभिः परिपीड़ित - विग्रहाः । 

गदभँयं तुषधान्यहरं सदा दुरित वाद - विवादयुताः नराः ।। 

अर्थात् ग्रीष्मकालीन फसलों का स्वामी (सस्येश) शनि हो, तो उस वर्ष सरकारी तन्त्र के कठोर व विचित्र नियमों / कर प्रावधानों के कारण साधारण जनता दुःखी एवं पीड़ित रहे। प्रजा में क्लिष्ट एवं विचित्र रोगों का भय एवं विभिन्न रोगों से पीड़ित रहें। जौं, मक्का, धान्य, चना आदि ग्रीष्मकालीन फसलों को प्राकृतिक प्रकोपों से हानि पहुँचे एवं उनके मूल्य तेज होंगे । अधिकांश लोग वृथा वाद - विवाद , मुकद्दमों एवं कानूनी झगड़ों में संलिप्त रहें । 

(4) धान्येश 'शुक्र' का फल - 

भृगौ पश्चिम - धान्येशे पश्चात् धान्यं न पच्यते । 

सस्यं समर्घतां याति स्वल्पं क्षीरं गवामपि ।। 

अर्थात् धान्य- स्वामी शुक्र हो , तो शीतकालीन फसलों (जैसे - जौं, मक्की, गन्ना, गेहूँ इत्यादि) का उत्पादन अपेक्षाकृत कम रहे। तूफान , प्राकृतिक प्रकोपों एवं असामयिक वर्षा के कारण ये समय पूर्व ही खराब हो जाएंगी । फलस्वरूप सर्वप्रकार के अनाज, उड़द, मूँग आदि दालें , काली मिर्च, छोटी इलायची, लौंग, हल्दी आदि गर्म मसालों में, उपभोग्य वस्तुओं, सब्ज़ियों, हरा चारा, खल - बिनौले आदि पशुचारा तेज़ भाव होंगे। उपयोगी वर्षा की कमी रहे , गाय - भैंस आदि चौपायों से दूध कम प्राप्त होगा। फलतः दूध, घी आदि गोरस महँगे होंगे। 

(5) मेघेश (वर्षा का स्वामी) ' बुध ' का फल -

अमृत रश्मिसुते यदि वारिपे बहुजलं तुष - धान्य - रसादिकम् । द्विजवरा यजनोत्सुक - चेतसो विविध सौख्ययुता धारणी तदा । अर्थात् मेघेश ( वर्षा का स्वामी ) बुध हो , तो वर्षा काल में पर्याप्त वर्षा हो एवं जल बरसेंगे । गेहूँ , जौँ , धान्य , पशुचारा , घास आदि की यथेष्ठ पैदावार होगी तथा दूध , गुड़ आदि रसादि पदार्थों की उपलब्धता भी पर्याप्त रहेगी । ब्राह्मण लोग पाठ , कीर्तिन , यज्ञादि धार्मिक कृत्य करने में विशेष रूप से संलग्न एवं उत्सुक रहेंगे । विशिष्ट वर्ग के लोग अनेक प्रकार के सुख - ऐश्वर्य के संसाधनों से सम्पन्न हों । पृथ्वी पर सामान्यतः सुख का वातावरण रहेगा । 

(6) रसेश ' चन्द्र का फल -  

अर्थात् चन्द्रमा रसेश हो , तो मनुष्य युवतियों के नए - नए रूपों से आकर्षित होकर उनसे सम्बन्ध रखें तथा विलासमय जीवनयापन करने लगते हैं । राजनीतिज्ञ लोग भी नए - नए ढंग से अपने मनोभावों को व्यक्त करते हैं तथा बनावटी विनम्र भाषण करेंगे। वर्षा पर्याप्त होगी। ईख, गुड़, दूध, तेल व अन्य रसदार पदार्थों की पैदावार में विशेष वृद्धि होगी तथा पृथ्वी पर लोगों में धन - धान्य, ऐश्वर्य, भोग्य आदि पदार्थों का प्रसार अधिक होगा। 

(7) नीरसेश (धातुओं के स्वामी) 'शनि' का फल -

अयः पिण्डादि - लोहानां कृष्णवस्त्रादि वस्तुनाम् । 

अर्घवृद्धिः प्रजायेत मन्दे नीरस - नायके ।। 

अर्थात् नीरसेश ( धातुओं के स्वामी ) शनि होने से स्टील, लोहा एवं लोह निर्मित कलपूर्जे, कच्चा लोहा , कोयला तथा अन्य काले वर्ण की वस्तुएं जैसे - पैट्रोलियम , डीज़ल तेल, क्रुड - आयल , फरनेस आयल, औद्योगिक मशीनरी एवं वस्तुएं , काले एवं ऊनी वस्त्र उड़द , काली मिर्च, लकड़ी, दालचीनी, गर्म मसालों व अन्य वस्तुओं के भावों में विशेष तेजी (वृद्धि) होगी। 

(8) फलेश ( फलों का स्वामी ) 'मंगल' का फल -

फलपतिर्यदि भूतनयो भवेन्न बहुपुष्प फलन्वित - पादपाः । 

गदभयान्वित देश - जनास्तदा नृपतयो बहुविग्रह - कारकाः ।। 

अर्थात् फलों का स्वामी ' मंगल ' हो तो वृक्षों पर फल - फूल , वनस्पतियों , औषधियों की पैदावार कम होगी। लोगों में अनेक प्रकार के (नानाविविध) क्लिष्ट रोगों से कष्ट एवं भय हो। राष्ट्राध्यक्षों (प्रशासकों) में परस्पर संघर्ष, टकराव, तनाव एवं युद्ध - भय की स्थिति बनेगी ।

(9) धनेश ' शनि ' का फल -

 द्रविणपे रविजे विरल धनं गदहता धरणीपतयस्तदा । 

अधनिका वणिजः कृषिजीविनो बुधजनाः परिपीडितमानसाः ।। 

अर्थात् शनि धनेश ( कोशपति ) हो , तो वायदा एवं हाजिर बाजारों में व्यापारी वर्ग धन की कमी अनुभव हो अर्थात् आर्थिक हानि होगी । शासकवर्ग एवं विशिष्ट ( धनी ) वर्ग के लोग रोग एवं शोक से पीड़ित रहे । व्यापारी वर्ग को क्रय - विक्रय आदि में हानि तथा | प्रशासनिक कुटिल नीतियों के कारण से परेशान रहें । किसानवर्ग को भी कृषि में अथवा प्राकृतिक प्रकोपों के कारण हानि उठानी पड़ेगी । विद्वान एवं ब्राह्मण लोग दुष्ट लोगों व्यवहार एवं आलोचना के कारण व्यथित रहें। 

(10) दुर्गेश (सेनापति) 'बुध का फल - 

शशिसुतो यदि दुर्गपतिर्भवेद् विषयसाम्यसुखं तु विशेषतः । 

न हि च द्रव्यवतां वणिजां भयं परबलगमजं न भयं क्वचित् ॥ 

अर्थात् दुर्गेश (सेना का स्वामी) बुध होने से जनता को सम और विषम ( मिश्रित अर्थात् अच्छी और बुरी- दोनों प्रकार की परिस्थितियों का सामना रहेगा । सामान्य भौतिक सुखों का उपभोग करेंगे। धनवान (साधन - सम्पन्न) लोगों एवं व्यापारी वर्ग को सामाजिक एवं सरकारी तंत्र की ओर से किसी प्रकार का भय ना होगा अर्थात जनता भयमुक्त वातावरण में निर्भीक होकर जीवन यापन करेंगे। शत्रु सेना द्वारा देश की सीमाओं का अतिक्रमण नहीं होगा।

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