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आश्विन नवरात्रि के सातवें दिन करें मां कालरात्रि की पूजा शत्रुओं का होगा नाश

आश्विन नवरात्रि के सातवें दिन करें मां कालरात्रि की पूजा

आश्विन नवरात्रि के सातवें दिन करें मां कालरात्रि की पूजा शत्रुओं का होगा नाश

अश्विन नवरात्रि की सप्तमी तिथि को मां जगत जननी दुर्गा जी के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा अर्चना करने का विशेष विधान है शास्त्र मान्यताओं के अनुसार मां काली स्वरूप के कारण ही इनका नाम कालरात्रि पड़ा इन्हें तमाम आसुरी शक्तियों का विनाश करने वाला बताया गया है मां कालरात्रि अपने उपासिकों को काल से भी बचा लेती हैं अर्थात उनकी अकाल मृत्यु कभी नहीं होती मां कालरात्रि को सभी सिद्धियों की देवी भी कहा जाता है तांत्रिक लोग इसी दिन अर्ध रात्रि में पूजा अर्चना करके तंत्र मंत्र यंत्र सिद्ध करते हैं मां कालरात्रि शब्द उच्चारण करते ही भूत-प्रेत राक्षस  दानव और सभी नकारात्मक शक्तियां भाग जाती हैं मां कालरात्रि की पूजा करने वाले मनुष्यों पर कभी भी जादू टोना टोटका इत्यादि का असर नहीं होता 

 

जो भी भक्त नवरात्रि के सांतवें नवरात्रि के दिन विधि विधान से पूजा करता है उसके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। बता दें कि मां कालरात्रि का शरीर अंधकार के सामान काला है, उनके ३ नयन है और उनका वाहन गधा है। 

"इस दिन सभी मनुष्यों को विशेष रुप से सावधान रहना चाहिए क्योंकि इसी दिन जादू टोना, टोटका का प्रभाव अत्यधिक रहता है शत्रु पक्ष नुकसान पहुंचाने की भरपूर कोशिश करता है।" 

यदि शत्रु तंत्र विद्या द्वारा बार-बार नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहा है तो इस दिन सायं काल के समय पंचमुखा दिया सरसों के तेल में प्रज्वलित करें और 5 जोड़ी लौंग दीए में रख दे अपने सिर में 7 बार घुमाकर चौराहे पर रख दें तत्पश्चात चौराहे पर नींबू को अपने सिर में 11 बार घुमाकर चार टुकड़े करें लाल कुमकुम लगाकर चारों नींबू के टुकड़ों को चारों दिशाओं में फेंक दें ऐसा करने से मां कालरात्रि की कृपा से शत्रु का सर्वनाश हो जाता है

मां कालरात्रि की पूजा विधि

नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की अर्धरात्रि में पूजा अर्चना की जाती है, पूजा के समय मां कालरात्रि को गुड़हल के फूल अत्यधिक प्रिय हैं और गुड़ का बना हुआ प्रसाद मां को अवश्य भोग लगाना चाहिए घी का दीपक जलाकर अपनी सामर्थ्य अनुसार यथाशक्ति मां कालरात्रि की पूजा अर्चना करनी चाहिए 

मधु-कैटभ-वध कथा 

ऋषि कहते हैं - राजन् ! जब ब्रह्माजीने वहाँ मधु और कैटभको मारनेके उद्देश्यसे भगवान् विष्णुको जगानेके लिये तमोगुणकी अधिष्ठात्री देवी योगनिद्रा की स्तुति की, तब वे भगवान्‌के नेत्र, मुख, नासिका, बाहु, हृदय और वक्षःस्थलसे निकलकर अव्यक्तजन्मा ब्रह्माजीकी दृष्टिके समक्ष खड़ी हो गयीं। योगनिद्रासे मुक्त होनेपर जगत्के स्वामी भगवान् जनार्दन उस एकार्णवके जलमें शेषनागकी शय्यासे जाग उठे। फिर उन्होंने उन दोनों असुरोंको देखा। वे दुरात्मा मधु और कैटभ अत्यन्त बलवान् तथा पराक्रमी थे और क्रोधसे लाल आँखें किये ब्रह्माजीको खा जानेके लिये उद्योग कर रहे थे। तब भगवान् श्रीहरिने उठकर उन दोनोंके साथ पाँच हजार वर्षोंतक केवल बाहुयुद्ध किया। वे दोनों भी अत्यन्त बलके कारण उन्मत्त हो रहे थे। इधर महामायाने भी उन्हें मोहमें डाल रखा था; इसलिये वे भगवान् विष्णुसे कहने लगे- 'हम तुम्हारी वीरतासे संतुष्ट हैं। तुम हमलोगोंसे कोई वर माँगो'।

श्रीभगवान् बोले - यदि तुम दोनों मुझपर प्रसन्न हो तो अब मेरे हाथसे मारे जाओ। बस, इतना सा ही मैंने वर माँगा है। यहाँ दूसरे किसी वरसे क्या लेना है। 

ऋषि कहते हैं - इस प्रकार धोखेमें आ जानेपर जब उन्होंने सम्पूर्ण जगत्‌में जल-ही-जल देखा, तब कमलनयन भगवान्से कहा- 'जहाँ पृथ्वी जलमें डूबी हुई न हो— जहाँ सूखा स्थान हो, वहीं हमारा वध करो

ऋषि कहते हैं - तब 'तथास्तु' कहकर शंख, चक्र और गदा धारण करनेवाले भगवान्ने उन दोनोंके मस्तक अपनी जाँघपर रखकर चक्रसे काट डाले। इस प्रकार ये देवी महामाया ब्रह्माजीकी स्तुति करनेपर स्वयं प्रकट हुई थीं। 

इस प्रकार श्रीमार्कण्डेयपुराण में सावर्णिक मन्वन्तरकी कथाके अन्तर्गत देवीमाहात्म्य में 'मधु-कैटभ-वध' नामक पहला अध्याय पूरा हुआ



 आचार्य दिनेश पाण्डेय (मुम्बई & उत्तराखण्ड)


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