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चैत्र पूर्णिमा पौराणिक व्रत कथा 12 अप्रैल 2025

चैत्र पूर्णिमा पौराणिक व्रत कथा 12 अप्रैल 2025

हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र मास की पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व है। इसे "चैत्र पूर्णिमा" कहा जाता है और यह तिथि धार्मिक, आध्यात्मिक व सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत पवित्र मानी जाती है। चैत्र मास हिन्दू नववर्ष का पहला महीना होता है, और इसकी पूर्णिमा विशेष रूप से पावन मानी जाती है। इस दिन सत्यनारायण व्रत, हवन, दान और स्नान का विशेष महत्व होता है। इसके साथ ही यह तिथि भगवान हनुमान जी के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाई जाती है जिसे हनुमान जयंती कहा जाता है।

चैत्र पूर्णिमा का धार्मिक महत्व
चैत्र पूर्णिमा को स्नान, ध्यान, व्रत और दान के लिए विशेष शुभ माना जाता है। इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि इस दिन किया गया दान अक्षय फल प्रदान करता है। इस दिन श्री सत्यनारायण भगवान की पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि और शांति आती है।

चैत्र पूर्णिमा से जुड़ी पौराणिक कथा

पुराणों में चैत्र पूर्णिमा से संबंधित एक अत्यंत रोचक और प्रेरणादायक कथा वर्णित है, जो न केवल धार्मिक आस्था को मजबूत करती है बल्कि यह भी सिखाती है कि सच्ची श्रद्धा और भक्ति से व्यक्ति अपने जीवन के सभी संकटों को पार कर सकता है।

बहुत प्राचीन काल की बात है। एक नगर में एक निर्धन ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ रहता था। उसका नाम शीलवान था, परंतु अत्यंत निर्धन था। वह दिनभर भीख मांगकर अपने जीवन का पालन-पोषण करता था। एक दिन जब वह बहुत निराश मन से घर लौट रहा था, तभी उसे मार्ग में एक साधु मिले। उन्होंने ब्राह्मण की उदासी का कारण पूछा। ब्राह्मण ने कहा, "मैं अत्यंत दरिद्र हूं, मेरे पास न तो भोजन है, न वस्त्र और न ही कोई सहारा।"

साधु ने उसे कहा, "वत्स, तुम्हारी इस दरिद्रता का कारण पूर्व जन्म के कर्म हैं, किंतु यदि तुम चैत्र मास की पूर्णिमा को श्रद्धापूर्वक व्रत रखकर श्री सत्यनारायण भगवान की कथा सुनो और उनका पूजन करो, तो तुम्हारे सभी दुख दूर हो सकते हैं।"

ब्राह्मण ने साधु के वचन को सच्चा मानकर चैत्र पूर्णिमा के दिन सत्यनारायण व्रत और कथा का आयोजन किया। उसने यथाशक्ति फल, मिठाई, फूल, जल, दीप और तुलसी पत्र से भगवान की पूजा की। कथा का श्रवण किया और ब्राह्मणों को भोजन कराया।

कुछ ही दिनों में उसकी दरिद्रता समाप्त हो गई। उसका घर सुख-समृद्धि से भर गया। यह देखकर पड़ोसी, नगरवासी और अन्य लोग भी इस व्रत को करने लगे। सत्यनारायण व्रत ने सबको शुभ फल प्रदान किया।

कथा का दूसरा भाग
एक बार एक लकड़हारा उस नगर में आया। वह बहुत ही मेहनती था लेकिन आर्थिक दृष्टि से अत्यंत कमजोर था। एक दिन उसने ब्राह्मण को देखा जो पहले निर्धन था, लेकिन अब सुख-समृद्धि से परिपूर्ण था। उसने कारण पूछा। ब्राह्मण ने सत्यनारायण व्रत का महत्व बताया और कथा सुनने की प्रेरणा दी।

लकड़हारे ने भी पूर्णिमा के दिन व्रत किया, पूजा की, कथा सुनी और अगले दिन से उसका जीवन बदल गया। उसके कार्य में उन्नति हुई और उसका परिवार भी सुखी हो गया।

चैत्र पूर्णिमा की विशेष पूजा विधि
इस दिन प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। फिर घर के मंदिर या किसी पवित्र स्थान पर श्री हरि विष्णु या श्री सत्यनारायण जी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। एक लकड़ी की चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर भगवान को स्थापित करें।

फिर पवित्र जल, तुलसी पत्र, पंचामृत, फल, मिष्ठान्न, फूल आदि से पूजा करें। कथा वाचन हेतु एक पात्र में पान, सुपारी, केला, नारियल और अन्य प्रसाद रखें। फिर श्रद्धापूर्वक सत्यनारायण व्रत कथा सुनें। कथा के पश्चात आरती करें और ब्राह्मणों को भोजन कराएं।

हनुमान जयंती और चैत्र पूर्णिमा
कुछ स्थानों पर यह भी मान्यता है कि चैत्र पूर्णिमा के दिन ही भगवान हनुमान का जन्म हुआ था। इसलिए इसे हनुमान जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन हनुमान मंदिरों में विशेष पूजा, सुंदरकांड पाठ, हनुमान चालीसा का पाठ किया जाता है और हनुमान भक्त व्रत रखते हैं।

 आचार्य दिनेश पाण्डेय शास्त्री (मुम्बई & उत्तराखण्ड)


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