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दीपावली महालक्ष्मी पूजन – शास्त्रसम्मत निर्णय 21 अक्तूबर 2025

दीपावली महालक्ष्मी पूजन – शास्त्रसम्मत निर्णय (21 अक्तूबर 2025, मंगलवार)

जैसा कि गतवर्ष हुआ था, उसी प्रकार इस वर्ष भी कार्तिक अमावस्या दो दिनों तक प्रदोषकाल में व्याप्त होने से दीपावली (महालक्ष्मी पूजन) के संबंध में जनमानस में संशय की स्थिति उत्पन्न हो रही है। किंतु शास्त्र के अनुसार, प्रदोषव्यापिनी अमावस्या तिथि में ही महालक्ष्मी पूजन करना विधिसम्मत एवं धर्मसम्मत है — यही मूल शास्त्रवचन है।


तिथि-विवरण (विक्रम संवत् 2082)

कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी तिथि का समाप्तिका — 20 अक्तूबर 2025, सायं 15:45 इसके पश्चात् अमावस्या तिथि का आरंभ — 20 अक्तूबर, 15:45 से जो अगले दिन 21 अक्तूबर 2025, सायं 17:55 तक व्याप्त रहेगी।


इस प्रकार 21 अक्तूबर को अमावस्या तिथि सूर्यास्त के पश्चात् अल्पकालिक रूप से प्रदोषकाल में विद्यमान रहेगी। जबकि 20 अक्तूबर को यह तिथि पूर्ण रूप से प्रदोष एवं निषीथकाल में विद्यमान रहती है।


फिर भी, धर्मसिन्धु ,निर्णयसिन्धु, एवं पुरुषार्थ-चिन्तामणि जैसे प्रमाणिक ग्रंथों में दिए गए तिथि-निर्णय नियमों के अनुसार, इस स्थिति में द्वितीय दिन (परत्र) अर्थात् 21 अक्तूबर, मंगलवार को ही दीपावली एवं महालक्ष्मी पूजन किया जाना शास्त्रसम्मत माना गया है।

शास्त्र-न्याय एवं निर्णय

“पूर्वत्रैव व्याप्तिरिति पक्षे परत्र यामत्रयाधिकव्यापि दर्शः दर्शापेक्षया प्रतिपद्वृद्धिसत्त्वे लक्ष्मीपूजादिकमपि परत्रैवेत्युक्तम्।”


(पुरुषार्थ-चिन्तामणि)

अर्थ — यदि अमावस्या तिथि प्रथम दिवस के प्रदोषकाल में ही सीमित हो तथा द्वितीय दिवस तीन प्रहर से अधिक समय तक व्याप्त रहे और प्रतिपदा तिथि वृद्धिगामिनी (वृद्धि प्राप्त करने वाली) हो, तो महालक्ष्मी पूजन द्वितीय दिवस ही किया जाना चाहिए।


शास्त्रीय गणना के अनुसार

21 अक्तूबर को अमावस्या तिथि सायं 17:55 तक विद्यमान है — अर्थात् तीन प्रहर से अधिक काल तक।

प्रतिपदा तिथि 20 घं. 17 मि. पर समाप्त होकर वृद्धिगामिनी है।

अमावस्या का कुल मान — 26 घं. 10 मि. तथा प्रतिपदा का कुल मान — 26 घं. 22 मि.


अतः, धर्मसिन्धु के अनुसार प्रदोषव्यापिनी एवं वृद्धिगामिनी तिथियों की स्थिति में महालक्ष्मी पूजन द्वितीय दिवस अर्थात् 21 अक्तूबर 2025 को ही शास्त्रसम्मत है।

शास्त्रीय निष्कर्ष

निर्णयसिन्धु, धर्मसिन्धु, पुरुषार्थ-चिन्तामणि एवं तिथि-निर्णय ग्रंथों के एकमत निर्णयानुसार —

“दोनों दिवस प्रदोषकाल में अमावस्या की व्याप्ति होने पर भी, जिस दिन अमावस्या तिथि सूर्योदय से सूर्यास्त (प्रदोषकाल) तक विद्यमान रहे, उसी दिन लक्ष्मीपूजन करना युक्तिसंगत एवं शास्त्रसम्मत है।”


अन्तिम निर्णय

सभी शास्त्रवचनों के अनुशीलन एवं गणितीय विचार के पश्चात् यह निष्कर्ष प्राप्त होता है कि —


श्री महालक्ष्मी पूजन एवं दीपावली पर्व 21 अक्तूबर 2025, मंगलवार के दिन ही सम्पूर्ण भारतवर्ष में शास्त्रसम्मत रूप से मनाया जाएगा।


यह निर्णय भारत के प्रमुख पंचांगकारों द्वारा भी मान्य एवं अनुमोदित है।

परम्परा एवं पूर्ववर्ती वर्षों (वि.सं. 2019, 2020, 2081) के उदाहरण भी इसी मत की पुष्टि करते हैं।


क्षेत्र विशेष के लिए परामर्श

कुछ पंचांगों में यह उल्लेख मिलता है कि पश्चिमी राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक एवं केरल जैसे स्थानों पर, जहाँ सूर्यास्त काल अपेक्षाकृत विलंबित है, वहाँ अमावस्या तिथि प्रदोष से पूर्व समाप्त होती है, अतः वहाँ 20 अक्तूबर को दीपावली मनाई जाए —

परंतु यह मत शास्त्रसम्मत नहीं है, क्योंकि —

यां तिथिं समनुप्राप्य उदयं याति भास्करः। सा तिथि सकला ज्ञेया स्नानदानव्रतादिषु॥”

अर्थात् — जिस तिथि के प्रभाव से सूर्य उदित होता है, वही तिथि सकल कर्मों के लिए योग्य मानी जाती है।


अतः, इन प्रदेशों में भी, भले ही अमावस्या प्रदोषकाल में अल्पकालिक क्यों न हो, लक्ष्मी पूजन 21 अक्तूबर, मंगलवार को सूर्यास्त के पश्चात् प्रदोषकाल (2 घंटे 24 मिनट की अवधि) में ही किया जाना धर्मसम्मत एवं फलदायक होगा।

अंतिम ज्योतिषीय मत

अतः 21 अक्तूबर 2025, मंगलवार को सायं 17:30 से 20:00 के मध्य (प्रदोषकाल) में

श्री महालक्ष्मी, श्री कुबेर एवं श्री गणेश पूजन

विधिपूर्वक करने से सम्पूर्ण वर्ष के लिए धन, वैभव, सौभाग्य एवं शांति की प्राप्ति होगी।


 आचार्य दिनेश पाण्डेय शास्त्री 


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